संत प्रवृत्ति से ही जीवन का कल्याण संभव
– सतगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज
काशीपुर (मुकुल मानव)। “जीवन में सन्तों का संग करना अत्यंत आवश्यक है। संत प्रवृत्ति से ही जीवन की वास्तविक सुंदरता है और उससे युक्त होकर ही सहज रूप में ही कल्याण की ओर बढ़ा जा सकता है।” यह शुभाशीष निरंकारी सतगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज ने महाराष्ट्र के 57वें निरंकारी संत समागम के द्वितीय दिन विशाल मानव परिवार को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। सतगुरू माता जी ने जीवन की सार्थकता को समझाते हुए कहा कि संसार में सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही प्रकार की प्रवृत्तियां विद्यमान हैं जिसका चुनाव हमें अपने विवेक से स्वयं ही करना होता है। ब्रह्मज्ञान हमें विवेकशील दृष्टिकोण प्रदान करता है जिसको अपनाकर हम सकारात्मक भाव से एक भक्ति भरा जीवन जीते चले जाते हैं।
महाराष्ट्र के पुरातन सन्तों को स्मरण करते हुए सत्गुरु माता जी ने फरमाया कि सभी सन्तों ने जीवन में प्रभु परमात्मा को प्राथमिकता देने की ही शिक्षा दी है। सन्तों की दिव्य वाणी से हमारे मन मे व्याप्त अहंकार, क्रोध, लोभ सहज रूप में अलोप हो जाते हैं। जिस प्रकार उबलते हुए पानी में हम अपना चेहरा नहीं देख सकते ठीक उसी प्रकार मन में क्रोध, अहंकार एवं स्वार्थ के भाव होने पर जीवन में कुछ भी स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देता। अंत में सतगुरू माता जी ने कहा कि परमात्मा ने हमें हर तरह की क्षमता प्रदान की है। हम चाहे तो एक सही मनुष्य बनकर फरिश्ते जैसा जीवन जी सकते हैं, जो मनुष्य का मूल स्वभाव है, अन्यथा इसके विपरीत दिशा में जाकर दानवीय प्रवृत्ति से ग्रसित हो सकते हैं। यह चुनाव हमारा अपना है। संत समागम में निरंकारी राजपिता रमित जी ने अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि सतगुरू ने ब्रह्मज्ञान द्वारा नश्वर और शाश्वत की पहचान कराई है, सत्य और माया को अलग-अलग करके दर्शाया है। सत्य वही है जो सदैव कायम-दायम है और इस सत्य को प्राप्त करने से ही जीवन में वास्तविक सुकून आ सकता है। सुकून की परम अवस्था परमात्मा को पाना ही है। इसके अभाव में स्थायी रूप में सुकून प्राप्त करना संभव नहीं। इस एक परमात्मा को जानकर, इससे इकमिक होकर ही हर पल में सुकून प्राप्त हो जाता है। अपनी इच्छा को प्रभु इच्छा में सम्मिलित करने से जीवन में शुकराने का भाव आता जिससे सुकून का अनुभव होता है।
संत समागम के तीनों मैदानों में समागम में आने वाले सभी श्रद्धालुओं के लिए लंगर की व्यवस्था की गई है। श्रद्धालुओं को स्टील की थालियों में दिन-रात लंगर परोसा जा रहा है। इसके अतिरिक्त समागम स्थल पर 5 कैन्टीनों में रियायती दरों पर विभिन्न खाद्य सामग्री की व्यवस्था की गई है। देशभर से आये हुए सभी श्रद्धालु बिना किसी भेदभाव के एक ही पंक्ति में बैठकर लंगर ग्रहण कर रहे हैं जिसे देखकर अनेकता में एकता तथा बंधुत्व भाव का एक सुंदर उदाहरण देखने को मिल रहा है। संत समागम में कायरोप्रैक्टिक
थेरपी का शिविर लगाया गया है जिसमें अमेरिका एवं यूरोप के अनेक डॉक्टर्स निष्काम सेवाएं अर्पित कर रहे
हैं। अब तक इस शिविर में करीब हजारों व्यक्तियों ने उपचार का लाभ प्राप्त किया
है। इस दिव्य सन्त समागम पर इसके अतिरिक्त अन्य सेवाओं में समर्पित भक्तों द्वारा भी प्रेमाभक्ति और निष्काम सेवा का भाव परिलक्षित किया जा रहा
है। यह जानकारी निरंकारी प्रकाश खेड़ा द्वारा दी गई।
मुकुल मानव- सह संपादक
कार्यालय – वार्ड नंबर 17, हाउस नंबर 363, कानूनगोयान, काशीपुर
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