काशीपुर। देश में अंग्रेजों के जमाने से चल रहे कानूनों की जगह तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम आज 1 जुलाई से लागू हो गए हैं। इन्हें आईपीसी (1860), सीआरपीसी (1973) और एविडेंस एक्ट (1872) की जगह लाया गया है। अब दंड की जगह न्याय मिलेगा। मामलों में देरी की जगह स्पीडी ट्रायल होगा। साथ ही सबसे आधुनिक क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम बनेगा। नए क्रिमिनल कानूनों पर अपनी राय देखते हुए एडवोकेट अमरीश अग्रवाल ने कहा कि कानूनों में बदलाव ने जांच एजेंसियों को काफी मजबूत बना दिया है। रिमांड पीरियड को बढ़ा दिया गया है। इससे मामलों की जांच में तेजी आएगी और मामले जल्दी सुलझाए जाएंगे। “मानव गरिमा” से बातचीत करते हुए एडवोकेट अमरीश अग्रवाल ने इन तीनों आपराधिक कानूनों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने इनसे जुड़े हर छोटे और बड़े पहलू पर बात की। आइए जानते हैं उन्होंने क्या-क्या कहा। अमरीश अग्रवाल ने बताया कि 1 जुलाई से पहले के जो भी मामले हैं उन्हें आईपीसी के तहत ही निपटाया जाएगा और उनके लिए सीआरपीसी प्रभावी होगी, लेकिन 1 जुलाई से दर्ज होने वाले मामलों पर बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता) की धाराएं लागू होंगी। इसी तरह 1 जुलाई से शुरू होने वाली जांच की प्रक्रिया भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के नियमों का पालन करेगी। नए आपराधिक कानूनों में महिलाओं के खिलाफ अपराध की धाराओं पर एडवोकेट अग्रवाल ने कहा कि पहली बार महिलाओं से जुड़े सभी कानूनों को एक ही चैप्टर में रखा गया है। इसलिए, आईओ (जांच अधिकारी) के लिए उन्हें पढ़ना बहुत आसान हो जाता है। दूसरी बात ये है कि पहले ई-एफआईआर वैकल्पिक थी। कुछ राज्यों ने इसे किया, कुछ ने नहीं लेकिन अब ई-एफआईआर आपके घर से की जा सकती है। हालांकि, दो-तीन दिन बाद आपको जाकर पुलिस से संपर्क करना होगा या अगर पुलिस आपके पास आती है तो आपको एक साइन्ड बयान देना होगा। कुल मिलाकर ई-एफआईआर का एक विकल्प है, लेकिन इसे कानून के अंदर एक क़ानून के तहत लाया गया है। यह कानून पहले से नहीं था।
उन्होंने कहा कि नए कानून में एक और अच्छी बात यह है कि अगर महिला पुलिस स्टेशन नहीं जाना चाहती है और उसका बयान घर पर दर्ज किया जाए, तो वह यह भी कह सकती है कि वह इसे लिखित में नहीं देना चाहती है और उसके बयान की वीडियोग्राफी की जाए। इसके अलावा और भी बहुत सी धाराओं में बदलाव किया गया है। पहले वॉयरिज्म के लिए आईपीसी की धारा केवल पुरुषों पर ही लागू होती थी, लेकिन अब अगर कोई महिला किसी अन्य महिला के साथ भी ताक-झांक करती है या उसके कपड़े उतारती है, तो उसे भी ऐसी ही सजा मिलेगी। एडवोकेट अमरीश अग्रवाल ने बताया कि नए कानून के बाद अब पीड़ित को अपनी एफआईआर की कॉपी पाने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता नहीं पड़ेगा। अब, पीड़ित को एफआईआर की कॉपी मुहैया कराना अनिवार्य कर दिया गया है। चेन ऑफ कस्टडी और डिजिटल साक्ष्य की रखरखाव क्षमता का चार्जशीट में उचित रूप से उल्लेख करना होगा। इसे तभी स्वीकार किया जाएगा जब इसका उल्लेख (चार्जशीट में) किया जाएगा। अब चलताऊ चार्जशीट दायर नहीं की जा सकती। पुलिस को हर चीज का उचित रूप से उल्लेख करना होगा। अमरीश अग्रवाल का कहना है कि पुलिस हिरासत और डिटेंशन (नजरबंदी) के संबंध में भी बदलाव किए गए हैं। अब 30 या 60 दिनों की अवधि के अंदर आरोपी की पुलिस हिरासत फिर से प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि, यह इस बात पर निर्भर करता है कि मामला किस तरह का है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि जब आप एक आरोपी को पकड़ते हैं और उसे दूसरे आरोपी के साथ जिरह करनी होती है, तो वे उपलब्ध नहीं होते क्योंकि आपको पुलिस हिरासत नहीं मिलती। इस बदलाव के साथ, आप फिर से उनकी पुलिस हिरासत प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि इन तीनों नये कानूनों का देशभर के साथ ही काशीपुर में भी व्यापक प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।
मुकुल मानव- सह संपादक
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