काशीपुर। उत्तराखंड में मेयर पद के लिए आयु की अर्हता 30 वर्ष नियत करने को लेकर पहाड़पन फाउंडेशन की संस्थापक कुसुम लता बौड़ाई ने विरोध जताया है। उनका कहना है कि उत्तराखंड में निकाय चुनाव यूपी म्यूनिस्पल एक्ट की कापी कर कराए जा रहे हैं। जबकि दूसरे राज्यों में मेयर का चुनाव लड़ने की अर्हता 21 वर्ष से 27 वर्ष तक है। उन्होंने इसे समानता के अधिकार का उल्लंघन मानते हुए इसके खिलाफ उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने की बात कही है। पिछले दिनों हुई पूर्व सैनिक एकता मंच की बैठक में सर्वसम्मति से पहाड़पन फाउंडेशन की संस्थापक कुसुम लता बौड़ाई को काशीपुर मेयर के पद पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ाने का निर्णय लिया गया था। कुसुम की आयु अभी 26 वर्ष से भी कम हैं। जबकि मेयर का चुनाव लड़ने के लिए आयु की न्यूनतम अर्हता 30 वर्ष है। म्यूनिस्पल एक्ट के मुताबिक कुसुम चुनाव नहीं लड़ पाएगी। किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष कार्तिक उपाध्याय और कुसुम लता ने आज दोपहर जसपुर खुर्द स्थित एक रिसोर्ट में पत्रकार वार्ता आयोजित कर कहा कि राज्य गठन के 24 साल बाद भी उत्तराखंड ने अपना पृथक म्यूनिस्पल एक्ट नहीं बनाया है। यूपी के एक्ट की नकल कर मेयर पद के लिए अर्हता 30 वर्ष कर दी गई है। जबकि असम में यह 21 वर्ष, इंदौर में 23 और महाराष्ट्र में 27 वर्ष है। जबकि दिल्ली में मेयर के लिए आयु सीमा 25 वर्ष है। उत्तराखंड में चुनाव के लिए 30 वर्ष आयु तय करना समानता के अधिकार का उल्लंघन है। वह इसे लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे। उन्होंने याचिका का निस्तारण न होने तक काशीपुर मेयर का चुनाव स्थगित रखने की मांग की है। साथ ही घोषणा की है कि यदि कुसुम चुनाव नहीं लड़ पाती है तो उनके स्थान पर पर्वतीय समाज से दूसरा प्रत्याशी उतारा जाएगा।
मुकुल मानव- सह संपादक
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