June 14, 2025

काशीपुर। आजकल अधिवक्तागण हड़ताल कर रहे हैं, मगर कारण आम लोगों को नहीं पता। आइये, इसके बारे में जानते हैं, काशीपुर बार एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष एडवोकेट सौरभ शर्मा से। एडवोकेट सौरभ शर्मा ने बताया कि एक कानून है, वकील अधिनियम। जो वर्ष 1961 में लागू हुआ। इस कानून में वकीलों के लिए काम करने के नियम बनाए गए। इन नियमों में वकीलों से जुड़े हुए जिला स्तर, प्रदेश स्तर, राष्ट्रीय स्तर पर संघ बनाए गए, जिन्हें बार संघ के नाम से जाना जाता है। ये बार संघ अपने और उनसे जुड़े वकीलों के लिए एक स्वतंत्र संस्थाएं हैं, इनमें राज्य सरकार और केंद्र सरकार द्वारा कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता है और ये जरूरी भी है क्योंकि इनमें हस्तक्षेप यानि पूरी कानून प्रणाली में हस्तक्षेप है। अब हाल की भारत सरकार इसे अपने अधीन करना चाहती है, सरकार एक नया संशोधन अधिनियम लाई है जिसके लागू होने से पूरी कानून प्रणाली सरकार के अधीन हो सकती है, कैसे? एडवोकेट सौरभ शर्मा ने बताया कि इस अधिनियम की एक धारा है 4, जिसमें संशोधन करके एक धारा 4 द जोड़ी गई है जिसके अनुसार हर एक बार संघ की कमेटी में एक व्यक्ति सरकार का होगा जो बार संघ के हर काम में अपनी सलाह देगा, आगे चलकर वो व्यक्ति बार संघ का अध्यक्ष भी बन सकता है। इस तरह बार संघ सरकार का हो जाएगा और वकीलों को सरकार के आदेशानुसार काम करना पड़ेगा। दूसरा, अधिनियम की धारा 35 ए के अनुसार वकीलों से किसी भी प्रकार के शोषण के खिलाफ हड़ताल करने का अधिकार छीन लिया जाएगा, वकीलों के साथ कुछ भी हो वे हड़ताल नहीं कर सकते। इसके अलावा कोई भी मुवक्किल वकील के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में शिकायत कर सकता है यानि जब दो वकील कोई केस लड़ते हैं तो एक तो हारता ही है, हारने वाले वकील के खिलाफ शिकायत होगी मतलब हर केस में दोनों वकीलों को जीतना पड़ेगा जो संभव नही है। वकीलों की फजीहत और जनता की भी। सरकार अगर जनता का शोषण करती है तो लोग वकीलों के पास जाते हैं मगर इस एक्ट के लागू होने के बाद वकील जो जनता के रखवाले कहलाए जाते हैं उनको सरकार अपने अधीन करके दबाना चाहती है। अब तक समाज के बहुत सारे लोग सरकार के थोपे गए फैसलों से उत्पीड़ित होते आ रहे हैं मगर अब नंबर वकीलों का है। अगर इस लड़ाई में वकील हार जाते हैं तो जनता को बचाने वाला कोई नहीं होगा। ये मामला सिर्फ़ वकीलों का नहीं है लोकतंत्र को बचाने का है, वकील हमेशा लोकतंत्र के प्रहरी रहे हैं, वकीलों को दबाना लोकतंत्र का गला घोंटना जैसा है। आज तक सब चुप रह कर सब कुछ बर्दाश्त कर रहे हैं, मगर अब फैसला आप सबके हाथ में हैं। लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में, यहां पर मेरा ही मकान थोड़े ही है। एडवोकेट सौरभ शर्मा ने इस संशोधित विधेयक पर अपनी राय व्यक्त करने का आग्रह बुद्धिजीवियों से किया है।

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