काशीपुर। देवभूमि उत्तराखंड में कौवा हमारी लोक सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा है। पर्व, त्योहार, धार्मिक मान्यताओं में कौवे का बड़ा महत्व है। घी संग्राद हो या श्राद्ध पक्ष दोनों कौवे के बिना अधूरे माने जाते हैं। लेकिन आश्चर्य की बात है कि पितृ पक्ष में प्रसाद ग्रहण करने के लिए एक भी कौवा नजर नहीं आ आया।चर्चा का केंद्र बने कौवे के नहीं दिखने को पितृ दोष के रूप में देखा जा रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार देवभूमि उत्तराखंड में बीते 17 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हुआ था, जिसका आज बुधवार को समापन हो गया। इस दौरान सनातन धर्म के अनुयायियों ने अपने-अपने पितृों को तर्पण दिया। पितृों का श्राद्ध करने पर मान्यता के अनुसार कौवे को प्रसाद दिया जाता है। इसके लिए कौवे का आह्वान किया जाता है। लेकिन पूरे पितृ पक्ष, यहां तक कि आज पितृ अमावस्या पर भी कौवा के दर्शन नहीं हुए। जबकि तीन-चार साल पहले पितृ पक्ष में कौवे स्वयं ही प्रसाद ग्रहण करने आया करते थे।मान्यता है कि कौवे द्वारा प्रसाद ग्रहण किए जाने से पितृ तृप्त हो जाते हैं, उन्हें दक्षिण लोक में पानी व भोजन प्राप्त हो जाता है। लोगों का कहना है कि कौवे के विलुप्त होने के पीछे पितृ दोष तो नहीं है।
मुकुल मानव- सह संपादक
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